Indian History

भारत का विभाजन 1947 | Partition of India 1947

Partition of India 1947:- क्या भारत का विभाजन आवश्यक था? – 1946 तक भी इस बात की आशा की जाती थी कि भारत की एकता की रक्षा की जा सकेगी। महात्मा गांधी ने कहा था कि चाहे सारे भारत को आग लग जाए तो भी पाकिस्तान नहीं बनेगा। परंतु 1947 में भारत के विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण में एक वास्तविकता का रूप ग्रहण कर लिया। इस प्रकार जिस आकस्मिक धन से भारत का विभाजन हुआ उसने इस संबंध में बहुत अधिक विवाद पूरी स्थिति को जन्म दे दिया।

मौलाना अबुल कलाम आजाद ने अपनी पुस्तक इण्डिया विन्स फ्रीडम में यह विचार व्यक्त किया था कि भारत का विभाजन कभी भी अवश्यम्भावी नहीं था और नेहरू एवं पटेल जैसे राष्ट्रीय नेताओं ने अपनी इच्छा से ही विभाजन के मार्ग को अपनाया। मौलाना आजाद लिखते हैं कि सर्वप्रथम नेहरू और पटेल ने लॉर्ड माउण्टबेटन की भारत विभाजन की योजना में सहमति प्रकट की और फिर उन्होंने कांग्रेस दल को भारत भाजन के पक्ष में किया। इसके विपरीत दूसरे व्यक्तियों का कहना है कि जुलाई 1946 और मार्च 1947 के बीच जो विविध घटनाएँ घटित हुईं, उनके परिणामस्वरूप भारत का विभाजन अवश्यम्भावी हो गया था। भारतीय समस्या के हल का अन्य कोई विकल्प नहीं था।

‘गम्भीर विचार के पश्चात् दूसरा विचार ही सत्य के अधिक समीप प्रतीत होता है। यह ठीक हो सकता है कि कांग्रेस नेताओं में सर्वप्रथम नेहरू और पटेल भी भारत के अन्य राष्ट्रीय नेताओं के समान भारत की एकता को बनाए रखने के लिए दृढ़ संकल्प थे। इसके अतिरिक्त वे किसी भी दूसरे व्यक्ति की तुलना में देश की सम्पूर्ण स्थिति से अधिक अच्छी तरह से परिचित थे। ऐसी स्थिति में अत्यधिक दबाव के कारण ही उनके द्वारा भारत विभाजन की योजना पर स्वीकृति दी गई थी। वास्तव में भारत विभाजन किसी व्यक्ति विशेष या किसी दल की इच्छा या निर्णय का परिणाम नहीं था।

ब्रिटिश सरकार की ‘फूट डालो और राज करो‘ की नीति, जिन्ना की हठधर्मिता, साम्प्रदायिक दंगों और माउण्टबेटन के दबाव आदि घटनाओं ने भारत का विभाजन अवश्यम्भावी बना दिया था। श्री इन्द्र विद्यावाचस्पति का कथन है- “यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि उस समय अनिवार्य समझकर कांग्रेस नेताओं ने विभाजन के साथ स्वाधीनता को स्वीकार किया। यदि वह स्वीकृति न देती तो क्या परिणाम होता, इस प्रश्न का उत्तर इतिहास की सीमा से बाहर है।”

भारत विभाजन के लिए निम्नलिखित कारण थे-(Partition of India 1947 Reason)

  1. ब्रिटिश सरकार की “फूट डालो और राज करो” की नीति– ब्रिटिश सरकार ने अपने साम्राज्य को बनाए रखने के लिए ‘फूट डालो और राज करो की नीति का पालन किया। बैक (मुस्लिम आंग्ल प्राच्य कॉलेज अलीगढ़ के प्रिंसिपल) से प्रभावित होकर सर सैयद अहमद खान ने भी पृथक्तावादी प्रवृत्ति का प्रचार किया। अंग्रेजों के प्रोत्साहन से ही 1906 में ढाका में मुस्लिम लीग की स्थापना हुई। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व के प्रणेता लॉर्ड मिण्टो थे। 1909 में मार्ले-मिष्टो सुधारों में साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व की माँग को स्वीकार कर लिया गया। इसी साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व की पद्धति ने पाकिस्तान की मांग के लिए आधारशिला का कार्य किया।
  2. जिन्ना का द्विराष्ट्र सिद्धांत- जिन्ना ने 1940 के मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में स्पष्ट रूप से घोषणा की कि मुसलमान हिन्दुओं से पृथक् हैं, उनका धर्म, साहित्य, दर्शन, इतिहास, देवी-देवता, रीति-रिवाज आदि हिन्दुओं से सर्वथा भिन्न हैं। जिन्ना ने इसी द्विराष्ट्र सिद्धान्त के आधार पर पाकिस्तान की मांग करते हुए कहा था- “यदि ब्रिटिश सरकार वास्तव में भारत में अपने निवासियों की शान्ति तथा प्रसन्नता प्राप्त करना चाहती है तथा अपने कार्य में वफादार है तो हम सबके सामने एकमात्र यही मांग है कि भारत को स्वतन्त्र राष्ट्रीय राज्यों में बाँटकर प्रधान जातियों को अलग-अलग घर बनाने की अनुमति प्राप्त करें।” उन्होंने यह भी कहा कि ऐसी दो जातियों को एक ही राज्य के जुए में जोतने का परिणाम असन्तोष की वृद्धि में होगा तथा जो आगे जाकर किसी भी प्रबन्ध का स्थायी नाश का कारण बनेगा।
  3. नेहरू जी का जन संपर्क आंदोलन- मुस्लिम लीग ने पं० जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस के जन-सम्पर्क के आन्दोलन पर बड़ा एतराज किया। मुस्लिम लीग ने इस आन्दोलन को अपनी सत्ता के विरुद्ध चुनौती माना। मुस्लिम लीग का यह दावा या कि वही एकमात्र मुसलमानों की प्रतिनिधि संस्था है। मुहम्मद अली जिन्ना ने घोषणा की कि कांग्रेस का आन्दोलन मुसलमानों में फूट डालने और उन्हें कमजोर करने के लिए आरम्भ किया गया। यह प्रचार किया गया कि कांग्रेस शासन के नियन्त्रण के अधीन मुसलमानों का भविष्य अन्धकारपूर्ण है। अतः मुस्लिम लीग ने इस आन्दोलन का प्रत्युत्तर ‘इस्लाम खतरे में है’ का नारा लगाकर दिया।
  4. लॉर्ड माउंटबेटन का प्रभाव- लॉर्ड माउण्टबेटन का प्रभाव भी कांग्रेस द्वारा भारत विभाजन का प्रस्ताव स्वीकार कर लेने के लिए उत्तरदायी था। माउण्टबेटन अपने राजनीतिक चातुर्य, अत्यधिक शिष्ट व्यवहार एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व के आर पर सरदार पटेल और पं० नेहरू को विभाजन के औचित्य को समझाने में सफल रहे। पं० नेहरू का कथन है कि हालात को मजबूरी थी और यह महसूस किया कि जिस मार्ग का हम अनुकरण कर रहे हैं, उसके द्वारा गतिरोध को हल नहीं किया जा सकता। अतः हमें देश के बँटवारे को स्वीकार करना पड़ा।
  1. मुसलमानों में सैक्षादिक पिछड़ेपन का भय- मुसलमानों में यह विचार उत्पन्न हुआ कि शिक्षा की दृष्टि से मुस्लिम ति पिछड़ी हुई है। अतः संयुक्त भारत में मुसलमान हिन्दुओं की तुलना में घाटे में रहेंगे। इसके अतिरिक्त मुसलमानों ने गांधी जी की र्धा शिक्षा योजना को भी पसन्द नहीं किया। उन्हें भय था कि वर्धा शिक्षा योजना जो हिन्दू नैतिक सिद्धान्तों पर आधारित थी, से उनके र्न और संस्कृति पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। मुसलमानों के मध्यम वर्ग के लोगों को विश्वास था कि पाकिस्तान की स्थापना होने पर उन्हें च पदों पर नियुक्त होने का अवसर मिलेगा। इसलिए उन्हीं लोगों ने बढ़-चढ़कर पाकिस्तान की माँग का समर्थन किया।
  2. सांप्रदायिक दंगे और उपद्रव- 1946-47 के साम्प्रदायिक दंगे भी पाकिस्तान के निर्माण के लिए उत्तरदायी थे। जब संवैधानिक साधनों से मुस्लिम लीग को अपने लक्ष्य में सफलता नहीं मिली तो लीग ने मुसलमानों को साम्प्रदायिक उपद्रवों के लिए उत्तेजित किया। 16 अगस्त, 1946 को प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस पर कलकत्ता में हिंसात्मक दंगे हुए। वी० पी० मेनन का कथन है— “कलकत्ता में उस दिन भारी लूट और मारकाट शुरू की गई। हिन्दुओं की सम्पत्ति को हानि पहुँची, लगभग 5000 व्यक्ति इन दंगों में मारे गए, 15,000 व्यक्ति घायल हुए और 1,00,000 व्यक्ति बे-घर हो गए।” मौलाना आजाद का कथन है- “ 16 अगस्त का दिन भारत के इतिहास में काले अक्षरों में लिखा जाने वाला दिन है। उस दिन की हिंसा के कारण नगर आतंक, हत्या और खून के सागर में डूब गया, सैकड़ों लोग मारे गए, हजारों व्यक्ति घायल हुए और करोड़ों की सम्पत्ति बर्बाद हुई। नगर में गुण्डों का राज था।” इसी प्रकार नौआखली, त्रिपुरा, गढ़मुक्तेश्वर, बिहार आदि स्थानों पर साम्प्रदायिक दंगों में हजारों व्यक्ति मारे गए। इसलिए हिन्दू-मुस्लिम दंगों को बन्द करने और देश को बढ़ती हुई अराजकता से बचाने के लिए पाकिस्तान की स्थापना के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं रह गया था।
  3. हिंदू संगठन संकीणता- मुस्लिम साम्प्रदायिकता को उत्तेजित करने के लिए संगठनों की संकीर्णता भी उत्तरदायी थी। हिन्दू महासभा ‘अखण्ड भारत’ का आदर्श रखती थी और वह हिन्दू संस्कृति, सभ्यता और हिन्दुत्व की रक्षा का नारा देकर मुसलमानों को विदेशी आक्रान्ता, धर्म-भ्रष्ट और हिंसक मानती थी। 1937 के हिन्दू महासभा के अहमदाबाद अधिवेशन में वीर सावरकर ने कहा था— “भारत में हिन्दू और मुसलमान दो राष्ट्र हैं।” 1939 में उन्होंने कहा था कि भविष्य में हमारी राजनीति विशुद्ध हिन्दू राजनीति होगी, उन्होंने समस्त हिन्दुओं को मुसलमानों के विरुद्ध प्रबल संगठन बनाने की अपील की। इससे मुसलमान भयभीत हुए और उन्हें भारत में अपना भविष्य अन्धकारमय दिखाई देने लगा।
पाकिस्तान का नाम 
पाकिस्तान अथवा पाक-स्तान  (पंजाब, अफगान, कश्मीर, सिंध और बलूचिस्तान) नाम केम्ब्रिज के एक पंजाबी मुसलमान छात्र चौधरी रहमत अली ने 1933 और 1935 में लिखित दो पर्चों में गढ़ा। रहमत अली इस नयी इकाई के लिए अलग राष्ट्रीय हैसियत चाहता था। 1930 के दशक में किसी ने रहमत अली की बात को गंभीरता से नहीं लिया। यहाँ तक कि मुस्लिम लीग और अन्य मुस्लिम नेताओं ने भी उसके इस विचार को केवल एक छात्र का स्वप्न समझकर खारिज कर दिया था।

Partition of India 1947 Extra Shots:

  • लखनऊ समझौता कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच हुआ।
  • मुस्लिम लीग की स्थापना 1906 ई. में हुई।
  • ढाका में मुस्लिम लीग की स्थापना हुई।
  • 1915 में हिंदू महासभा की स्थापना हुई।
  • 23 मार्च, 1940 को मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान का प्रस्ताव पास किया था।
  • ब्रिटिश सरकार ने मार्च 1946 में कैबिनेट मिशन दिल्ली भेजा।

पाकिस्तान के विचार का विरोध करते हुए गांधी जी ने निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए-

(1) लीग द्वारा पाकिस्तान की माँग पूरी तरह गैर-इस्लामिक है और मैं इसे पापपूर्ण कार्य मानता हूँ।

(2) इस्लाम मानव की एकता और भाई-चारे का समर्थक है न कि मानव परिवार की एकजुटता को तोड़ने का

(3) जो तत्व भारत को एक-दूसरे के खून के प्यासे टुकड़ों में बाँट देना चाहते हैं वे भारत और इस्लाम दोनों के शत्रु है।

(4) भले ही वे मेरे शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दें परन्तु मुझसे ऐसी बात नहीं मनवा सकते जिसे मैं गलत मानता हूँ।

मुस्लिम लीग के 1940 वाले प्रस्ताव की माँग थी—

“भौगोलिक दृष्टि से सटी हुई इकाइयों को क्षेत्रों के रूप में चिह्नित किया जाए, जिन्हें बनाने में जरूरत के हिसाब से इलाकों का फिर से ऐसा समायोजन किया जाए कि हिन्दुस्तान के उत्तर-पश्चिम और पूर्वी क्षेत्रों जैसे जिन हिस्सों में मुसलमानों की संख्या अधिक है, उन्हें इकट्ठा करके ‘स्वतन्त्र राज्य’ बना दिया जाए, जिनमें शामिल इकाइयाँ स्वाधीन और स्वायत्त होंगी।”

लीग की माँग क्या थी? क्या वह ऐसे पाकिस्तान की माँग कर रही थी जैसा हम आज देख रहे हैं?

लीग की माँग थी कि भौगोलिक दृष्टि से सटी हुई इकाइयों को क्षेत्रों के रूप में चिह्नित किया जाए, जिन्हें बनाने में जरूरत के हिसाब से इलाकों का फिर से ऐसा समायोजन किया जाए कि हिन्दुस्तान के उत्तर-पश्चिम और पूर्वी क्षेत्रों जैसे जिन हिस्सों में मुसलमान बहुसंख्यक हैं उन्हें एकत्र करके ‘स्वतन्त्र राज्य बना दिया जाए’ जिसमें शामिल इकाइयाँ स्वाधीन और स्वायत्त होंगी।

मुस्लिम लीग उपमहाद्वीप के मुस्लिम बहुल इलाकों के लिए कुछ स्वायत्तता चाहती थी। उस समय लीग आज जैसा पाकिस्तान नहीं चाहती थी। आज का पाकिस्तान एक राज्य न होकर स्वतन्त्र राष्ट्र है।

ऐसे ही अनेक परिणाम के बाद सन् 1947 में भारत का विभाजन हो जाता है। 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान राष्ट्र का उदय होता है तथा 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिलती है।

Indian Freedom History 1947:- 1947 भारत की आज़ादी या इसके टुकड़े करने की थी साजिश..

Nyaypalika Kya Hai aur uske karya:- न्यायपालिका क्या है और इसके कार्य? न्यायपालिका के कितने अंग है?

चुनाव की आवश्यकता क्यों? चुनाव व्यवस्था तथा चुनाव का तरीका क्या है?

Islam Ka Uday:- इस्लाम का उदय कैसे हुआ था? इस्लाम के प्रमुख सिद्धांत तथा पांच स्तंभ क्या है?

Share
Kanchan Verma

Kanchan Verma is the Author & Founder of the https://frontbharat.com She is pursuing graduation from Banaras (UP) . She is passionate about Blogging & Digital Marketing.

Recent Posts

100+ Interesting GK Questions – ऐसा क्या है जो हमेशा आता है लेकिन पहुंचता कभी नहीं ?

Interesting GK Questions – ऐसा क्या है जो हमेशा आता है लेकिन पहुंचता कभी नहीं…

5 months ago

महादेव मेरी Mohabbat का ध्यान रखना

महादेव मेरी Mohabbat का ध्यान रखना क्योंकिउससे अपना ख्याल नहीं रखा जाता और मैं उससे…

8 months ago

Ghats of Banaras:- बनारस के 88 घाटों के नाम

Ghats of Banaras:- वाराणसी में घाट नदी के किनारे कदम हैं जो गंगा नदी के…

9 months ago

Culture and food of Banaras :- बनारस की संस्कृति और यहां का खान पान

Culture and food of Banaras:- वाराणसी, भारत की धार्मिक राजधानी जिसे "बनारस" या "बनारस" या…

9 months ago