आज इस ब्लॉग पोस्ट में हम आपको Markandeya Mahadev Mandir काशी शिव जी का निवास स्थान है। पौराणिक कथाओं के अनुसार काशी शिवजी के त्रिशूल पर टिकी हुई है जब जब भी कोई विपत्ति आती है तो शिवजी काशी को अपनी त्रिशूल से उठा देते हैं और संकट टल जाने के बाद उसे पुनः स्थापित कर देते हैं। काशी सप्तपुरी में से एक है। यह संतों की नगरी है। बनारस अपने घाटो तथा इसकी सुंदरता के लिए बहुत ही लोकप्रिय बना रहता है। बनारस में श्री काशी विश्वनाथ जी का दरबार है।
बनारस में तो अनेकों मंदिर हैं। पर आज हम उन्हें मंदिरों में से एक चमत्कारी मंदिर मारकंडेय महादेव (Markandeya Mahadev Mandir) के बारे में जानेंगे। मारकंडे बाबा के बारे में पूरा जाने के लिए इसे पूरा पढ़ें:-
कहा जाता है कि बहुत साल पहले कैथी गांव में एक ऋषि हुआ करते थे। उनका नाम था मारकंडू लोग उन पर और उनकी पत्नी पर नहीं संतान होने की वजह से हंसा करते थे। कहते थे कि बिना संतान का इनका वंश कैसे आगे बढ़ेगा इन सब के तानों से परेशान होकर वह विंध्याचल चले गए हैं और ब्रह्म देव की तपस्या करने लगे। ब्रह्म देव प्रकट हुए और कह के उनका उद्धार सिर्फ महाकाल अर्थात महादेव ही कर सकते हैं। इसलिए दोनों दंपत्ति अपने घर वापस कैथी गांव आ गए और यही गंगा और गोमती के संगम पर शिवलिंग बनाया। शिवलिंग बनाने के पश्चात हुआ निस दिन उसकी पूजा करने लग।
इन दोनों की भक्ति से प्रसन्न होकर भोलेनाथ प्रकट हुए और उनको पुत्र होने का वरदान दिया। वरदान देने के पश्चात् शिवजी ने उनके सामने दो प्रस्ताव रखा। आपको एक पुत्र मिलेगा वह 100 साल का होगा परंतु वह मूड होगा तथा एक पुत्र मिलेगा जो केवल 12 वर्ष की आयु तक ही जीवित रहेगा। शिवजी की यह बात सुनकर दोनों चिंतित हो गए परंतु उन्होंने एक फैसला लिया कि वह 12 साल वाले पुत्र को चुनेंगे यह उचित रहेगा।
धीरे-धीरे समय बीतता गया मारकंडू के पुत्र मार्कंडेय बहुत ही ज्ञानी थे। उनके पास ज्ञान का बहुत ही बड़ा भंडार था। जब मार्कंडेय ऋषि का मृत्यु का समय आ गया तो उनके माता-पिता यह सोचकर चुपके से रोने लगे। जब मार्कंडेय ने अपने माता-पिता को रोते हुए देखा तो उसने अपने पिता से पूछा कि आप रो क्यों रहे हो तब उनके पिता ने बताया कि तुम्हारे मृत्यु का समय निकट आ गया है।
अपनी मृत्यु के बारे में जानकर मारकंडे जी भगवान शिव के शिवलिंग को पकड़कर खूब रोने लगे। उन्होंने बहुत रोया और उनके आंसू को देखकर शिवजी पीघल गए और वहां प्रकट हुए तथा उन्होंने मार्कंडेय को आशीर्वाद दिया। तभी उसी समय वहां पर यमराज प्रकट हुए। शिवजी ने यमराज को देख कर कहा कि हे यमराज तुम यहां से चले जाओ। यमराज ने कहा मैं हंस नहीं जाऊंगा मैं यहां मारकंडे का प्राण लेने आया हूं।
यमराज के ऐसे बोलने पर शिवजी अत्यंत ही क्रोधित हुए उन्होंने कहा कि मैं कालों का काल हूं अर्थात महाकाल हूं और तुम मुझसे ही प्रश्न करते हो। यमराज ने जब शिवजी का रौद्र रूप देखा तो वह डरकर वहां से चले गए। इस प्रकार शिव जी ने मार्कंडेय को महामृत्युंजय का मंत्र दिया। जिसकी सहायता से कोई भी व्यक्ति लंबी आयु तक जी सकता है और शिव जी ने कहा कि जो भी अपनी माता-पिता की सेवा करेगा तो लंबी आयु अवश्य ही प्राप्त करेगा।
Markandeya Mahadev Mandir Location
ॐ त्र्यंबकम यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम उर्वारुकमिव वंदना मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।
आप इस मंत्र का रोजाना जाप करें कुछ दिन के बाद धीरे-धीरे आप अपने जीवन में परिवर्तन होते हुए देखोगे।
यदि आप मार्कंडेय महादेव (Markandeya Mahadev) के दर्शन के लिए जा रहे हो तो आपको प्रसाद लेने के लिए ज्यादा परेशान होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि प्रसाद मंदिर के परिसर में जाने से पहले ही बगल में लगा रहता है आप वहां से प्रसाद खरीद सकते हैं। बगल बगल में ही दुकानें सजी रहती हैं आप वहां से अपने पसंद की वस्तुएं भी कर सकते है।
मारकंडेय महादेव (Markandeya Mahadev)जोकि गंगा तथा गोमती नदी के किनारे स्थित है। यही गंगा तथा गोमती नदी के किनारे घाटों पर ही पंडित लोग बैठे रहते हैं जो कि बच्चों तथा बड़ों का मुंडन करते हैं तो वह आप उन्हें पैसे देकर अपने बच्चों का तथा अपना मुंडन करा सकते हो।
मार्कंडेय ने अपनी भक्ति से शिवजी को प्रसन्न कर लिया था जिसकी वजह से शिवजी ने उसे जीवन का वरदान दिया और यमराज को रौद्र रूप दिखाया जिसे देखकर यमराज डर गए और वहां से तुरंत पलायन कर दिए। जिसकी वजह से मार्कंडेय को एक नया जीवनदान मिला और यमराज की हार हुई।
यदि आप महादेव के सच्चे भक्त हो और आप महादेव के 12 ज्योतिर्लिंग का दर्शन करना चाहते हो तो इस मंत्र का रोजाना जाप करें जिसके फलस्वरूप आपको महादेव के 12 ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होगा। मंत्र👇
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम् ।। उज्जयिन्यां महाकालंओम्कारम् अमलेश्वरम्॥ परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम् ।। सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥ वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे। हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये ॥ एतानिज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।।
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