Famous Ghats of Varanasi:- इसे वाराणसी, काशी तथा बनारस नाम से जाना जाता है। यह हिंदू धर्म में एक पवित्र स्थल है और यह मुक्ति का केंद्र भी है। हिंदू धर्म में यह माना जाता है कि जिस भी व्यक्ति की बनारस में मृत्यु होती है वह मुझको प्राप्त होता है। बनारस महादेव की नगरी है यह महादेव की त्रिशूल पर टिकी हुई है।
बनारस अपने खान- पान, बनारसी साड़ी तथा महादेव श्री काशी विश्वनाथ के लिए अत्यधिक प्रसिद्ध है। भारत के लोगों का ही नहीं बल्कि अब विश्व भर का एक आकर्षित केंद्र बन चुका है लोग यहां दूर-दूर से घूमने के लिए आते हैं। बनारस को गलियों का शहर कहा जाता है क्योंकि यहां पर बहुत ही गलियां पाई जाती हैं। बनारस में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय है जिसमे देश विदेश से छात्र पढ़ने के लिए आते हैं।
काशी कहो बनारस कहो या फिर वाराणसी कहो इश्क हमारा तो एक ही है
– कंचन वर्मा
बनारस अपने घाटों के लिए भी बहुत ही प्रसिद्ध है। यहां पर कुल 84 घाट हैं परंतु इन 84 घाटों में से कुछ प्रसिद्ध घाट भी हैं। तो आइए हम आपको बनारस के उन सभी प्रसिद्ध घाटों का नाम बताते हैं और उनके इतिहास के बारे में भी बताते हैं। बनारस के घाटों में अच्छी तरह से जानने के लिए इसे पूरा पढ़ें।
कुछ तो बात है बनारस में यूं ही घाटों पर इतनी भीड़ नहीं होती।।।
– कंचन वर्मा
दशा सुमेर घाट का नाम इस पौराणिक कथा से मिलता है कि भगवान ब्रह्मा नेहा एक यज्ञ के दौरान 10 घोड़े की बलि दी थी।यहां ज्यादातर त्योहार बहुत ही भव्य पैमाने पर मनाया जाते हैं या विश्वनाथ मंदिर के पास स्थित है ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मा जी ने भगवान शिव की रचना यही की थी। भक्तों की आस्था दशाश्वमेध घाट से अधिक लगी हुई है। वह बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने से पहले दशाश्वमेध घाट पर स्नान करते है।
– कंचन वर्मातू बन घाट बनारस का
मैं शाम तलक भटकू को तुझ में
अस्सी घाट प्राचीन नगरी काशी का एक घाट है। गंगा के तट पर उत्तर से दक्षिण फैली घाटों की श्रृंखला में सबसे दक्षिण की और अंतिम घाट है। इसके पास कई मंदिर और अखाड़े हैं। अस्सी घाट के दक्षिण में जगन्नाथ मंदिर है जहां प्रतिवर्ष मेला लगता है। इसका नामकरण असी नामक प्राचीन नदी के गंगा के साथ संगम के स्थल होने के कारण हुआ। अस्सी घाट पर बैठकर ही तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना की थी तथा इसी घाट पर उन्होंने अपना अंतिम समय बिताया था। यहां पर्यटक साम को गंगा आरती का आनंद लेते हैं। नवीन रास्ता नगवा से होकर सीधे लंका को जोड़ती है। शाम काल यहां से संपूर्ण काशी के घाटों का अवलोकन किया जा सकता है।
मैं बैठ गया अस्सी घाट पर बनारस में यूं दिन गुजर गए
ना तेरा इश्क याद रहा तेरी बातें भी भूल गए।।
कंचन वर्मा
सबसे अधिक विचित्र घाट है मणिकर्णिका घाट। जिसे केवल जलती हुई घाट के रूप में भी जाना जाता है। यह वह स्थान है जहां बनारस में हर समय चिता जलती रहती हैं। यहां पर सब का अंतिम संस्कार किया जाता है। लगभग 28000 से अधिक हर साल लोगों का यहां पर अंतिम संस्कार होता है। हिंदू धर्म के अनुसार यहां का शव उन्हें मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त कर देता है। दर्शन मणिकर्णिका घाट पर मौत से आमने-समने आपका आमना सामना होगा।
जब भगवान शिव माता सती के जले हुए शव को लेकर पूरे ब्रह्मांड में घूम रहे थे तब माता सती का कान जल कर यहां पर गिरा था इसलिए इसका नाम मणिकर्णिका घाट है। मणिकर्णिका घाट में ही एक पार्वती कुंभ है। हर साल इस घाट पर मसान की होली खेली जाती है और यह बहुत ही धूमधाम से मनाई जाती है।
एक दिन मटिया में सभई के सिंगार होई
जब पिंजरा से सुगना फरार होई
– कंचन वर्मा
अस्सी घाट से 2 किलोमीटर और वाराणसी जंक्शन से 6 किलोमीटर की दूरी पर हरिशचंद्र घाट वाराणसी में पवित्र गंगा के किनारे एक श्मशान घाट है। यह वाराणसी के सबसे पुराने घाटों में से एक है और घूमने के लिए लोकप्रिय स्थानो में से एक है।
हरिश्चंद्र घाट का नाम महान सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के नाम पर रखा गया है जिन्होंने अपना जीवन एक श्मशान के रखवाले के रूप में बिताया था ऐसा माना जाता है कि भगवान ने उन्हें उनके मृत पुत्र और उनके राज्य को वापस देकर उनके दृढ़ संकल्प दान और सच्चाई के लिए पुरस्कृत किया।
दूर-दूर से हिंदू अपने प्रिय जनों के शवों को अंतिम संस्कार के लिए इस घाट पर लाते हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं में माना जाता है कि जिस व्यक्ति के अंतिम अधिकार यहां किए जाते हैं उन्हें मूछ मिलता है।
हां मैं शमशान हूं सब का अंतिम विश्राम हूं जीवन पर विराम हूं सनातन सत्य अविराम हूं…
कंचन वर्मा
ललिता घाट नेपाल के राजा राण बहादुर शाह द्वारा बनवाया गया था। जब अपने निवास के दौरान वाराणसी में रहते थे। यहीं रहते हुए वह वाराणसी में पशुपतिनाथ मंदिर की प्रति के समान मंदिर बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने इस घाट का निर्माण शुरू किया देवी आदिशक्ति के अवतार ललिता को समर्पित एक मंदिर के साथ एक नेपाली मंदिर भी है।
सादगी अगर गंगा सी हो
तो मन बनारस होना चाहिए
कंचन वर्मा
तुलसी घाट का नाम राम चरित्र मानस लिखने वाले संत कवि तुलसीदास जी के नाम पर रखा गया है। तुलसीदास ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा इसी घाट पर राम चरित्र मानस लिखते हुए बिताया इसे 1941 में बलदेव दास बिरल ने इस घाट का ना नव निर्माण किया था। यहां पर एक हनुमान मंदिर है जहां रामचरितमानस की लिखित प्रति थी जो 2011 में मंदिर से चोरी हो गई।
जिसने भी छुआ वह स्वर्ण हुआ
सब कहे मुझे मैं पारस हूं
मेरा जन्म महासमसान मगर
मैं जिंदा शहर बनारस हूं
।।पार्वती पतये हर हर महादेव।।
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