The Story Of Manikarnika Ghat:- वाराणसी, जिसे काशी और बनारस भी कहा जाता है, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में गंगा नदी के तट पर स्थित एक प्राचीन नगर है। हिन्दू धर्म में यह एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है, हिंदू मान्यता में इसे “अविमुक्त क्षेत्र” कहा जाता है। वाराणसी संसार के प्राचीन बसे शहरों में से एक है। काशी नरेश वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी धार्मिक क्रिया-कलापों के अभिन्न अंग हैं। वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। यह नगरी सप्तपुरीओं में से एक है तथा हिंदुओं का एक तीर्थ स्थल है।
बनारस के 84 घाटों में से आज बात करेंगे मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghat) की। जो एक पवित्र स्थल है। मणिकर्णिका घाट पहुंचने का रास्ता बहुत ही तंग गलियों से होकर गुजरता है। इन्हीं तंग गलियों में ला से आती रहती हैं। मणिकर्णिका के बारे में जानने के लिए इसे पूरा पढ़ें –
जब जीनगी बीते उदासी में,
तब चली आवा सीधे काशी में।।
Kanchan verma
मनुष्य के जीवन का सफर बहुत लंबा होता है। ना जाने कितने उतार-चढ़ाव कई सारे कठिनाइयों का सामना करके हमें जीवन का हर सफर पूरा करना पड़ता है। जब इस जीवन का सफर समाप्त हो जाता है तो लोग मोक्ष प्राप्ति के लिए जगह खोजते हैं। जो काशी के मणिकर्णिका घाट में मिलती है।
काशी का मणिकर्णिका घाट एक ऐसा स्थान है जहां पर पहुंचकर मनुष्य को जीवन का असलियत पता चलता है। वह अपने जीवन में भले ही कितना खुश क्यों ना हो पर जब वह मणिकर्णिका घाट पर जलाया जाता है तो यह पूरी दुनिया विमानी लगती है। मणिकर्णिका घाट बनारस का एक ऐसा घाट है जहां पर हर समय चिता जलती रहती हैं। ऐसा कहा जाता है कि जिस दिन इस घाट पर चिता नहीं जली उस दिन बनारस के लिए प्रलय का दिन होगा। भारत के इस पावन नगरी को वेदों में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।
यहां स्थित मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghat) के विषय में कहा जाता है कि यहां जलाया गया शव सीधे मोक्ष को प्राप्त होता है। व्यक्ति की आत्मा को जीवन मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। यही वजह है कि अधिकतर लोग यही चाहते हैं कि उनकी मृत्यु काशी में हो तथा उनका शो बनारस के मणिकर्णिका घाट पर जलाया जाए।
इसके अलावा एक और पौराणिक कथा है जो इस घाट के महिमा को उजागर करती है। माना जाता है कि जब शिव विनाशक बनके सृष्टि का विनाश कर रहे थे तब भगवान विष्णु ने शिवजी को शांत करने के लिए तब प्रारंभ किया। भगवान शिव और मां पार्वती जब यहां आए तो शिव जी ने अपने त्रिशूल से यह गंगा किनारे एक कुंड का निर्माण किया। जब मां पार्वती इस कुंड में स्नान कर रहे थे तो उनके कान के बाली का एक मनी उस कुंड में गिर जाता है जिसके बाद से यहां का नाम मणिकर्णिका पड़ गया। इस कुंड के किनारे स्थित घाट को मणिकर्णिका घाट कहा जाने लगा।
आपकों जानकार हैरानी होगी कि Manikarnika Ghat 24 घंटा चिताये जलती रहती हैं। दुनिया इधर से उधर हो जाए परंतु यहां चिता है तब से जल रही हैं जबसे माता पार्वती ने शराब दिया और कहा कि यहां कि आग कभी नहीं बुझेगी।
एक बार माता पार्वती यहां पर स्नान कर रहे थे जिसकी वजह से उनके कान का मानी कुंड में गिर गया बहुत प्रयत्न करने के बाद भी उनकी मनी नहीं मिली तब माता पार्वती ने क्रोधित होकर इस स्थान को श्राप दिया कि यहां पर हमेशा चिता जलती रहेगी।
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