Most Important Essay For Class 12th Board Exam:- निबंध कैसे लिखे?- कम लेकिन चुने हुए शब्दों में किसी विषय पर अपने विचार प्रकट करने का प्रयत्न निबंध कहलाता है। निबंध का आरंभ किस ढंग से किया जाना चाहिए कि इसे पढ़ने वालों की जिज्ञासा शुरू से ही बढ़ जाए और वह उसे पूरा पढ़ने को विवश हो।
पर्यावरण प्रदूषण के कारण और निवारण क्लास ट्वेल्थ के बोर्ड एग्जाम में हर साल पूछे जाते है। तो आज हमने इसी के बारे में लिखा है। तथा एक निबंध को कैसे लिखना चाहिए उसके स्ट्रक्चर को भी बताया है। तथा किस प्रकार लिखे कि हमें बोर्ड एग्जाम में अच्छे नंबर प्राप्त हो। निबंध लिखने से पहले हमको स्लोगन ऐड करेंगे तथा बीच-बीच में भी स्लोगन ऐड करेंगे और फिर एक स्लोगन लास्ट में लिखेंगे इससे हमें निबंध में अच्छे नंबर प्राप्त होते हैं।
पर्यावरण का रखें ध्यान, तभी बनेगा देश महान
प्रदूषण दो शब्दो- प्र+दूषण से मिलकर बना है। स्वच्छ वातावरण में ही जीवन का विकास संभव है। जब वातावरण में कुछ हानिकारक तत्व आ जाते हैं। तो वातावरण को दूषित कर देते हैं या गंदा वातावरण जीव धारियों के लिए अनेक प्रकार से हानिकारक होता है। इस प्रकार वातावरण को दूषित हो जाने को ही प्रदूषण कहते हैं। जब संख्या के असाधारण वृद्धि एवं प्रौद्योगिक प्रवृत्ति ने प्रदूषण की समस्या को जन्म दिया है और योगी तथा रासायनिक कूड़े कचरे के ढेर से पृथ्वी हवा तथा पानी प्रदूषित हो रहे हैं।
आज के वातावरण में प्रदूषण निम्न रूपों में दिखाई पड़ता है- वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, रासायनिक प्रदूषण।
वायुमंडल में विभिन्न प्रकार की गैस से एक विशेष अनुपात में उपस्थित रहते हैं। जीवधारी अब्दुल क्रियाओं द्वारा ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते रहते हैं। हरे पौधे प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड लेकर ऑक्सीजन निष्कासित करते रहते हैं। इससे वातावरण में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का संतुलन बना रहता है किंतु मानव अपने अज्ञान वर्ष और आवश्यकता के नाम पर इस असंतुलन को नष्ट करता रहता है।
सभी जीव धारियों के लिए जल बहुत महत्वपूर्ण और आवश्यक है। पौधे भी अपना भोजन जल के माध्यम से प्राप्त करते हैं। या भोजन पानी में खुला रहता है। जल में अनेक प्रकार के खनिज तत्व, कार्बनिक अकार्बनिक पदार्थ तथा गैस से गोली रहती हैं। यदि जल मैया पदार्थ आवश्यकता से अधिक मात्रा में हो जाते हैं तो जल प्रदूषित होकर हानिकारक हो जाता है और वह प्रदूषित जल कहलाता है।
ध्वनि प्रदूषण आज की एक नई समस्या है। इसे वैज्ञानिक प्रगति ने पैदा किया है। मोटरकार, ट्रैक्टर, जेट विमान, कारखानों के सायरन कोमा मशीनें तथा लाउडस्पीकर आदि ध्वनि के संतुलन को बिगाड़ कर ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। तेज ध्वनि में श्रवण शक्ति का हास्य होता है और कार्य करने की क्षमता पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। कभी-कभी पड़ोस में लाउडस्पीकर बजने से रात भर नींद नहीं आती। इससे अन्य प्रकार की बीमारियां पैदा होती हैं अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण से मानसिक विकृति तक हो सकती है।
कारखाने से बहते हुए अपशिष्ट द्रव्य के अलावा खाद डालने की उपज में वृद्धि की दृष्टि से प्रयुक्त कीटनाशक दवाइयों से और रासायनिक खादों से भी स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यह पदार्थ पानी के साथ बहकर नदियों तालाबों और अनंत है समुद्र में पहुंच जाते हैं और जीवन को अनेक प्रकार से हानि पहुंचाते हैं।
प्रदूषण को मार डालो या यह तुम्हें मार डालेगा
पर्यावरण प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण विश्व की जनसंख्या में तेजी से होने वाली वृद्धि है। विश्व की जनसंख्या आज सुरसा की भांति अपना मुंह फैला दी जा रही है। जनसंख्या में जिस तेजी के साथ विस्तार होता जा रहा है कोमा उतनी ही तेजी से आदमी की सुविधाओं में हास्य होता जा रहा है। रहने के लिए स्थान की भारी कमी आ रही है। खाने के लिए संतुलित भोजन उपलब्ध होना कठिन हो गया है। आज भारत जनसंख्या की दृष्टि से पहले नंबर पर है।
पर्यावरण प्रदूषण का दूसरा बड़ा कारण विज्ञान है विज्ञान के आविष्कार जहां मानव जाति के लिए वरदान स्वरूप सिद्ध हुए हैं, वही उनसे मानव का भयंकर अहित भी हुआ है। विज्ञान ने विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन के लिए अनेक मशीनों का निर्माण किया है। इन मशीनों को चलाने के लिए ईंधन के रूप में पेट्रोल कॉमेडी जल कौवा कोयल ला कमाल लकड़ी, तेल आदि का उपयोग किया जाता है। कारखानों की ऊंची ऊंची मुनियों से दिन-रात निकलने वाले धुएं की अपार राशि सारे वातावरण को दूषित करती रहती है। धुए से सारा वातावरण काली मायम दिखाई देता है। इसके साथ ही इन कारखानों से निकलने वाला दूसरी जहां भी जाकर स्वच्छ जल में मिलता है वहां का जल विषैला हो जाता है। बड़ी-बड़ी नदियों में जहां-जहां ऐसे कारखाने काजल मिलता है कोमा वहां बड़ी दूर तक नदियों का जल विषैला हो जाता है। उनमें कोई जीव जंतु जीवित नहीं बच पाता।
अधिक जनसंख्या एक विपत्ती है, यह विनाश की उत्पत्ति है।।
पर्यावरण को दूषित करने वाली परिस्थितियां आज मानव के समक्ष चुनौती बनकर खड़ी है। वातावरण को दूषित करने में हम सभी जिम्मेदार हैं। इसका निदान भी हम सबको मिलकर ही करना पड़ेगा। हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने इस समस्या को गंभीरता से समझा था इसलिए उन्होंने यज्ञ की सृष्टि की थी पूर्णविराम यज्ञों में प्रयुक्त कमाती आदि के कारण वातावरण शुद्ध रहता है। लेकिन आज इन चीजों का प्रयोग करना कठिन है। यज्ञ की कल्पना आज असंभव हो गई हैं।
अतः इस समस्या पर नियंत्रण के लिए सबसे प्रथम उपाय तो यह है की बढ़ती हुई जनसंख्या पर नियंत्रण किया जाए। सीमित जनसंख्या रहने से पर्यावरण दूषित होने की संभावना कम रहेगी। साथ ही अधिक से अधिक वृक्षारोपण भी पर्यावरण को स्वच्छ बनाने में मदद करता है और उस जगह का वातावरण भी सुंदर होगा।
नदियों के पानी को प्रदूषण से बचाने के लिए हमें उस जल में मृत जीवो अथवा शवो को प्रवाहित नहीं करना चाहिए। दुआ रोकने के लिए यह सुगम उपाय है कि कल कारखानों ऐसे स्थानों पर लगाए जाए जहां जनसंख्या अधिक ना हो।
उपर्युक्त उपायों से हम वातावरण को शुद्ध बनाए रख सकते हैं।पर्यावरण प्रदूषण की समस्या सारे विश्व में है। इससे कोई भी देश या क्षेत्र बच नहीं सकता। अतः इस समस्या को सामूहिक रूप से सुलझाने का प्रयत्न करना चाहिए। शासन द्वारा इस दिशा में जो प्रयास किए जा रहे हैं कोमा में हमें भी पूरी सामर्थ्य के साथ सहायता करनी चाहिए। हम गरीब देश और प्रदेश के निवासी हैं। पर्यावरण प्रदूषण के महंगे कार्यक्रमों पर चलना हमारे लिए सरल नहीं है। यदि इन कार्यक्रमों के उत्पादन पक्ष का समावेश कर ले तो फिर हमारे लिए वह भी सुगम हो जाएगा। अतः हमें अपनी प्रकृति को साफ रखना है।
लेख- कंचन वर्मा बनारसी
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