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धर्म निरपेक्षता क्या है तथा इसकी विशेषता? भारतीय धर्मनिरपेक्षता का मॉडल तथा इसकी आलोचना…

धर्म निरपेक्षता क्या है :- “आध्यात्मिक या धार्मिक विषयों में किसी तरह का संबंध ना रखते हुए गैर अधत्मिकता से होता है।…. धर्मनिरपेक्षता का अर्थ धार्मिक नियमों से अलग है उसके विपरीत व्यवस्था से होता है। यह आध्यात्मिक या धार्मिक स्थिति के विपरीत पूरी तरह अलौकिक है।

ब्रिटानिका विश्वकोश

  • धर्मनिरपेक्षता (secularism) शब्द का सबसे पहले प्रयोग जायजा का मूल्य नामक व्यक्ति ने सन 1886 में किया था। बीसवीं शताब्दी में होली आपने चार्ल्स ब्रेड ला के साथ मिलकर धर्म निरपेक्ष आंदोलन को आगे बढ़ाया। यद्यपि शीघ्र ही दोनों में गहरे मतभेद हो गए फिर भी वह दोनों अलग-अलग रूप से ब्रिटेन में धर्मनिरपेक्ष आंदोलन को लोकप्रिय बनाने में लगे रहे। इसका प्रभाव यूरोप सहित अमेरिका पर भी गहरे रूप से हुआ।

धर्म निरपेक्षता क्या है?

धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है किसी राज्य राजनीति या किसी गैर धार्मिक मामलों से धर्म को दूर रखना।

धर्मनिरपेक्षता एक ऐसी अवधारणा है जो कि जीवन और आचरण का एक ऐसा सिद्धांत प्रस्तुत करती है जो मत पंथ या धर्म के विरुद्ध होता है।”

धर्मनिरपेक्षता अपने अर्थ में पूरी तरह भौतिकवादी विचार है जो यह मानकर चलता है कि मानवीय विकास केवल भौतिक साधनों द्वारा ही किया जा सकता है।”

संक्षेप में या कहा जा सकता है कि धर्मनिरपेक्षता शब्द का प्रयोग आधुनिक काल में यूरोप से प्रारंभ हुआ है और उसमें स्वतंत्र चिंतन पर बहुत अधिक बल दिया गया है।

धर्मनिरपेक्ष राज्य

धर्मनिरपेक्ष राज्य व राज है जो सभी व्यक्तियों को शक्ति गत और सामूहिक धर्म की स्वतंत्रता देता है। व्यक्तियों के साथ उनके धार्मिक विश्वास का विचार किए बिना नागरिक के रूप में उसके साथ व्यवहार करता है ऐसे राज्य का संबंध भी किसी विशेष धर्म के साथ नहीं होता और ना ही वह किसी धर्म का संरक्षण या उसके मामलों में हस्तक्षेप की नीति अपनाता है।”

धर्मनिरपेक्ष राज्य की विशेषता

  1. इस तरह धर्मनिरपेक्ष राज्य का संबंध किसी विशेष धर्म के साथ नहीं होता है।
  2. राज्य अपने कानूनों की रचना करते समय सामाजिक हित को प्रमुखता देता है ना कि धार्मिक सिद्धांतों या मान्यताओं को।
  3. धर्मनिरपेक्ष राज्य में नागरिकों के साथ धर्म के आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जाता है।
  4. इन राज्य के अंदर सभी महत्वपूर्ण पर सभी नागरिकों को योग्यता और उनकी गुणवत्ता के आधार पर प्राप्त होता है।
  5. धर्मनिरपेक्ष राज्य इस बात की भी देखभाल करता है कि राज्य द्वारा संचालित संस्थाओं के साथ-साथ सरकार द्वारा अनुदान या सहायता प्राप्त संस्थाओं में भी नागरिकों के साथ किसी भी तरह का भेदभाव ना किया जाए।
  6. धर्मनिरपेक्ष राज्य में सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त रहती है तथा सभी नागरिक अपनी इच्छा के अनुसार अपने धर्म का पालन करते हैं।

इन सब विशेषताओं का यह अर्थ नहीं है कि धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर धर्मनिरपेक्ष राज्य सामाजिक कुरीतियों को चुपचाप सहन करता रहेगा। सामाजिक हित में धर्मनिरपेक्ष राज्य को सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का अधिकार होता है। इसी तरह धर्म पर चला जिस बात की भी चिंता करता है कि एक विशेष धर्म को मानने वाले लोग दूसरे धर्म को मानने वाले व्यक्तियों को तंग ना कर सके और उनकी धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप ना कर सके। यदि किसी धर्म के मानने वाले लोग ऐसा करते हैं तो, धर्मनिरपेक्ष राज्य को उन्हें नियंत्रित और अनुशासित करने का अधिकार होता है।

धर्मनिरपेक्षता का भारतीय मॉडल

धर्मनिरपेक्षता का भारतीय मॉडल हीरो मांडल से काफी हद तक अलग है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता धर्म व राज्य के मध्य संबंध विच्छेद पर आधारित नहीं है। यहां बहुत से धर्मों के लोग निवास करते हैं। यहां बहुत पहले से ही अंतर धार्मिक सहिष्णुता की संस्कृति विद्यमान थी। यहां धर्म राज्य की स्थापना की गई है जो धर्मनिरपेक्ष है परंतु यहां राज्य धर्म की पूर्ण रूप से अनदेखी नहीं करता है। वह तटस्थ रहकर मूकदर्शक की भूमिका अदा नहीं करता है बल्कि मौका पड़ने पर धर्म के क्षेत्र में दखलअंदाजी भी करता है।

भारतीय मॉडल में राज्य कोई अधिकार प्राप्त होता है कि वह ऐसे धार्मिक कार्य जो शांति व्यवस्था को प्रभावित करते हैं उन्हें रोक सकता है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता हिंदू धर्म में दलितों और महिलाओं, मुस्लिम धर्म में महिलाओं के साथ तथा बहुत संघ के द्वारा अल्पसंख्यकों के साथ होने वाले भेदभाव में राज्य का हस्तक्षेप आवश्यक मानता है। इसी प्रकार भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में धार्मिक सुधार करने में भी राज्य का विशेष योगदान रहा है भारतीय संविधान में बाल विवाह, सती प्रथा तथा छुआछूत जैसी धार में कुप्रथा ऊपर रोक लगा दी गई है इस प्रकार धर्मनिरपेक्षता का भारतीय मॉडल यूरोपीय मॉडल से काफी भिन्न है।

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भारतीय धर्मनिरपेक्षता की आलोचना

भारतीय धर्मनिरपेक्षता के निम्नलिखित आधारों पर आलोचना की जाती है-

धर्म विरोध यह तर्क दिया जाता है कि धर्मनिरपेक्षता धर्म विरोधी है तथा धार्मिक पहचान के लिए खतरा उत्पन्न करती है। परंतु यह सब निराधार है क्योंकि धर्मनरपेक्षता धार्मिक स्वतंत्रता और समानता को बढ़ावा देती है और धार्मिक पहचान की हिफाजत करती है।
पश्चिम से आयातितयह कहा जाता है कि धर्मनिरपेक्षता पश्चिमी इस आयत से संबंधित है। इसलिए यह भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल नहीं है। परंतु यह सत्य नहीं है। धर्म व राज्य के बीच पारस्परिक निषेध की व्याख्या अलग-अलग लोगों द्वारा अलग-अलग प्रकार से की गई है। कोई गायों के बीच शांति बनाए रखने के लिए धर्म से सैद्धांतिक दूरी बनाए रख सकता है और विशेष समुदायों की रक्षा हेतु हस्तक्षेप भी कर सकता है।
अल्पसंख्यक वादयह तर्क दिया जाता है कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता अल्पसंख्यक अधिकारों की पैरवी करती है। इन अधिकारों को संविधान की गारंटी प्राप्त होती है। अल्पसंख्यकों को ऐसे विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं जिसके लिए दूसरों को कीमत चुकानी पड़ती है।
अतिशय हस्तक्षेप कारीयह कहा जाता है कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता आवश्यक रूप से समुदायों की धार्मिक स्वतंत्रता से अत्यधिक हस्तक्षेप करती है भारतीय धर्मनिरपेक्षता राज्य समर्पित धार में सुधारों के अनुमति देती है जिन्हें कि संविधान में भी शामिल कर लिया गया है। परंतु इससे समुदायों के निजी अधिकार और अंततः धार्मिक व अंतर धार्मिक वर्चस्व प्रभावित होते हैं।
वोट बैंक की राजनीतिवोट बैंक की राजनीति को बढ़ावा देने में धर्मनिरपेक्षता का दुरुपयोग किया जाता है। राजनेता अपने स्वार्थ हेतु इसका प्रयोग करते हैं। भारत में लगभग सभी दल इसका प्रयोग राजनीति में करते हैं।
धर्मनिरपेक्षता एक असंभव परियोजना योजनाधर्मनिरपेक्षता बहुत सी और समाधानी समस्याओं का समाधान करना चाहती है जो कि असंभव है या माना जाता है कि विभिन्न धर्मों का गणित आर्मिक मतभेदों वाले लोग एक साथ शांति से नहीं रह सकते हैं। परंतु भारतीय इतिहास का आंदोलन स्तर को गलत सिद्ध कर देते हैं।
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Kanchan Verma

Kanchan Verma is the Author & Founder of the https://frontbharat.com She is pursuing graduation from Banaras (UP) . She is passionate about Blogging & Digital Marketing.

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