जम्मू कश्मीर, जूनागढ़, हैदराबाद को छोड़कर शेष सभी राज्य वालों के शासक 15 अगस्त, 1947 से पहले ही भारत में विलय के लिए राजी हो गए थे। मणिपुर के शासक ने भी विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए थे यद्यपि बाद में यह मामला कुछ उलझ गया था। शीघ्र ही इस समस्या का समाधान कर लिया गया।
1947 भारत के आजादी का दिन, आजादी के साथ-साथ यह देश के टुकड़ों का भी समय था। जहां पर कई सारे देशी रियासतें अपना अलग अस्तित्व बनाना चाहती थी। परंतु इन सारी रियासतों को एक करके भारत को टूटने से बचाया गया। तो आइए हम आज जानेंगे कि देस रियासतों जम्मू कश्मीर, जूनागढ़ तथा हैदराबाद का विलय भारत में कैसे हुआ था।
भारतीय संघ में देशी रियासतों के विलय की उपलब्धि का श्रेय सरदार पटेल और उनके सुयोग्य सचिव टीवी मेनन को जाता है। सरदार वल्लभ भाई पटेल की चतुराई और कूटनीति ने भारत को अनेक टुकड़ों में विभक्त होने से बचा लिया। ब्रिटेन के एक दैनिक समाचार पत्र ‘मेनचेस्टर गार्जियन’ के संपादक ने लिखा था- “पटेल न केवल स्वतंत्रता के संगठन करते थे बल्कि संघर्ष समाप्त होने पर नए राज्य के निर्माता भी थे। एक ही व्यक्ति एक साथ सफल विद्रोही तथा सफल राजमार्ग नहीं होता सरदार पटेल इसका अपवाद थे।”
रियासतों को भारत में सम्मिलित करने के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में रियासती मंत्रालय बनाया गया। जूनागढ़ रियासत को जनमत संग्रह के आधार पर तथा हैदराबाद की रियासत को पुलिस कार्यवाही के माध्यम से और जम्मू कश्मीर रियासत को विलय पत्र पर हस्ताक्षर के द्वारा भारत में मिलाया गया था।
जूनागढ़ गुजरात के दक्षिण पश्चिम छोर पर स्थित एक राज्य था इसमें मानवदार, मांगरोल तथा बाबरियाबाढ़ नामक जागीरे शामिल थी। इसके तथा पाकिस्तान के बीच में अरब सागर था और यहां 80 परसेंट जनसंख्या हिंदू थी। उसके दीवान पर शाहनवाज भुट्टो, मुस्लिम लीग के जाने-माने सदस्य की सलाह पर जूनागढ़ के नवाब महाबत खान पाकिस्तान के साथ सम्मिलित हो गए। पाकिस्तान के उत्पन्न होने के पश्चात 15 अगस्त 1947 को शामिल होने की घोषणा की गई। जब पाकिस्तान ने इस सम्मेलन की स्वीकृति सितंबर माह में दी तब भारत सरकार को आघात पहुंचा कि मुहम्मद अली जिन्ना यह जानते हुए भी कि हिंदू तथा मुसलमान एक राष्ट्र के रूप में नहीं रह सकते फिर भी उन्होंने जूनागढ़ के विलय का अनुमोदन कैसे किया। पटेल को इस बात का ज्ञान था कि अगर जूनागढ़ के पाकिस्तान में सम्मिलित हो ऐसे ही जाने दिया तब गुजरात में पहले से ही सिर उठता सांप्रदायिक तनाव और तीव्र हो जाएगा।
पटेल जी ने पाकिस्तान को सम्मेलन रद्द करने तथा जूनागढ़ में जनमत संग्रह कराने के लिए समय दिया। जूनागढ़ की जनता की अर्जी हुकूमत के आधार पर समलदास गांधी ने एक लोकतंत्रात्मक प्रवासी सरकार बनाई। अंततः पटेल ने जूनागढ़ की तीन जगहों पर बलपूर्वक कब्जा करने का आदेश दिया। जूनागढ़ का दरबार जो पहले से ही आर्थिक विफलता का सामना कर रहा था भारतीय सेनाओं का सामना करने की स्थिति में नहीं था। दिसंबर माह में जनमत संग्रह कराया गया और उनमें 99% लोगों ने पाकिस्तान के स्थान पर भारत में शामिल होने के लिए अपने पसंद को व्यक्त किया।
तत्कालीन भारत के केंद्र में हैदराबाद नामक विशाल राज्य स्थित था। उस समय हैदराबाद की जनसंख्या 1 करोड़ 40 लाख थी।जिसमें 50% हिंदू थे। हैदराबाद का नरेश निजाम उस्मान अली खान था और उसका ब्रिटिश राज के साथ सदैव एक विशेष संबंध रहा था। अब अंग्रेजों ने हैदराबाद को अधिपत्य का दर्जा देने से मना कर दिया। तब निजाम ने मुसलमान उग्रवादी कासिम रिजवी के प्रभाव में आकर स्वतंत्रता प्राप्ति की ठान ली। हैदराबाद भारत की एकता और अखंडता के लिए बहुत महत्वपूर्ण था। पटेल को यह विश्वास था कि हैदराबाद सहयोग के लिए पाकिस्तान पर आश्रित है और भविष्य में यह सदैव भारत की सुरक्षा के लिए एक खतरा बना रहेगा।
पटेल का यह भी विश्वास था कि भारत की एकता के लिए भारत के साथ हैदराबाद का होना अति आवश्यक है परंतु वह लॉर्ड माउंटबेटन की इस बात से सहमत हैं कि शक्ति का तुरंत प्रयोग नहीं किया जाए। इसलिए निष्क्रिय साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए गए इस प्रकार का समझौता किसी अन्य नरेश के साथ नहीं हुआ था। जिसमें भारत में सम्मिलित होने का आश्वासन हो फिर भी पटेल चाहते थे कि हैदराबाद यह आश्वासन अवश्य दें कि पाकिस्तान के साथ सम्मिलित नहीं होगा। माउंटबेटन तथा भारत के एजेंट के एम मुंशी ने निजाम के दूध के साथ वार्तालाप की परंतु दोनों एक दूसरे के द्वारा प्रस्तुत की गई शर्तों से सहमत नहीं थे और निजाम ने भारत पर अवरोध उत्पन्न करने का आरोप लगाया। दूसरी तरफ भारत ने निजाम पर यह आरोप लगाया कि हैदराबाद पाकिस्तान से हथियार प्राप्त कर रहा है और निजाम रजनी के राजा का लड़ाकू ओकीको हिंदुओं को डराने तथा भारत के गांवों पर प्रहार करने की छूट दे रहा है।
लॉर्ड माउंटबेटन ने ‘समझौते के शीर्ष’ नामक एक सुझाव को बड़ी सूझबूझ के साथ जिसके अनुसार राज कारों को छिन्न-भिन्न करने तथा हैदराबाद पहुंच पर अंकुश लगाना था निजाम से चला गया कि वह जनमत संग्रह तथा संवैधानिक सभा के लिए निर्वाचन करवाएं और आखिरकार उनको भारत में सम्मिलित होना था। 13 सितंबर से 18 सितंबर तक भारतीय फौज ने हैदराबादी फोर्स तथा रज कारों के विरुद्ध युद्ध किया और उन्हें हराया। सांकेतिक रूप से निजाम को हैदराबाद के मुखिया के रूप में रखा गया। माउंटबेटन तथा नेहरू द्वारा कूटनीति द्वारा एकीकरण उत्पन्न करने का मुख्य उद्देश हिंदुओं तथा मुसलमानों के मध्य हिंसा के प्रारंभ से बचना था। पटेल ने इस बात पर जोर दिया कि अगर हैदराबाद के स्वतंत्र स्थिति को बनाए रखा गया तब सरकार की इज्जत पर धब्बा लग जाएगा और उसके बाद हैदराबाद में ना हिंदू और नहीं मुस्लिम अपने आप को सुरक्षित अनुभव कर पाएंगे।
कश्मीर का राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय राजनीति में विशेष स्थान है। कश्मीर के मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के बीच तीन युद्ध हो चुके हैं। इसकी स्थिति से संबंधित मामला संयुक्त राष्ट्र के सामने 1948 से रखा हुआ है कश्मीर पिछले कुछ वर्षों से महा शक्तियों के लिए भी राजनीति का विषय बना रहा है।
1947 में जब ब्रिटिश सरकार ने भारत को दो भागों हिंदुस्तान और पाकिस्तान में विभाजित किया उस समय कश्मीर पर लोकप्रिय तथा निरंकुश महाराजा हरि सिंह का शासन था। कश्मीर में शायद इस आशा में कि वह भारत तथा पाकिस्तान से भिन्न एक स्वतंत्र एवं स्वायत्त शासन स्थापित कर सकेगा दोनों राज्यों में से किसी एक में भी विलय होने के दबाव का प्रतिरोध किया। अपने महत्वकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसने पाकिस्तान के साथ 16 अगस्त 1947 को एक समझौता किया और ऐसा एक समझौता भारत के साथ भी करने का निश्चय किया। फिर भी स्वतंत्रता की घोषणा के साथ जब देश का भारत तथा पाकिस्तान विभाजन हुआ तब पंजाब में हिंदुओं सिखों तथा मुसलमानों के मध्य सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे। सितंबर में दंगे मुसलमानों के विरुद्ध प्रारंभ हुए। कश्मीर के पश्चिमी भाग में मुसलमानों ने महाराज के विरुद्ध विद्रोह कर दिया और अपनी स्वतंत्र सरकार कश्मीर में स्थापित कर ली।
उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत के सशस्त्र पठान कबीलों ने इस अवसर का लाभ उठाने के लिए तथा कश्मीर के अवशेष राज्य को पाकिस्तान में सम्मिलित कराने के लिए कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण से सावधान होकर हरि सिंह ने भारत से सैनिक सहायता की मांग की परंतु भारत ने तब तक मदद करने से इनकार कर दिया जब तक राजा हरि सिंह विलय पत्र पर हस्ताक्षर नहीं कर देते। नेशनल कांस पार्टी के धर्मनिरपेक्ष तथा लोकप्रिय नेता शेख अब्दुल्ला से सहमति प्राप्त होने के पश्चात भारत ने इस विलय को स्वीकार किया। हरि सिंह ने इस समझौते पर 27 अक्टूबर 1947 को हस्ताक्षर किए और उसी दिन भारतीय सेना ने छापा मारो को पीछे धकेलने के लिए कश्मीर में प्रवेश किया। स्थानीय मुसलमानों ने भारतीय सेना का साथ दिया।
भारत के इस हस्तक्षेप से पाकिस्तान के गवर्नर जनरल मुहम्मद अली जिन्नाह क्रोधित हुए। 27 अक्टूबर को पाकिस्तान सेना के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल सर डग्लस ग्रेसी को उसने आदेश दिया कि वह पाकिस्तान की नियमित सेना कश्मीर के लिए रवाना करें परंतु फील्ड मार्शल आर्ट इन लेख जोक संक्रमण काल का सुप्रीम कमांडर था ने जिन्ना से अपने द्वारा जारी किए गए आदेश को वापस लेने के लिए अनुरोध किया। नवंबर मास में आक्रमणकारियों की सैनिक भेजने के हस्तांतरण को जिन्ना ने स्वीकृति दे दी और 1948 के प्रारंभ में पाकिस्तान ने आक्रमणकारियों को सहयोग देने के लिए स्वयंसेवकों के रूप में नियमित सेना भेजी और जुलाई 1948 तक पाकिस्तान ने अपने द्वारा प्रत्यक्ष रूप से लड़ाई में भाग लेने से इनकार किया और तत्पश्चात पाकिस्तान ने इस सत्य को स्वीकार किया।
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