Kashi Mahajanapada के बारे में इतिहासकारों ने कहा है कि भारत के प्राचीन इतिहास में छठी शताब्दी ई०पू० को एक अति महत्त्वपूर्ण युग कहा है। इस युग में प्राचीन राज्यों में नगरों का उदय हुआ। इस काल में लोहे का अधिक प्रयोग होने लगा तथा सिक्के बनाएं जाने लगें। इसी काल में कई नये धर्मों तथा सम्प्रदायों का भी उदय हुआ। परन्तु उसमें से केवल बौद्ध तथा जैन विचारधाराएं ही अब तक जीवित है। इन धर्मों के ग्रन्थों में अन्य बातों के अलावा सोलह राज्यों अथवा महाजनपदो (कबीला बस्तियों) का वर्णन है। यद्यपि इन ग्रन्थों में महाजनपदों के नाम आपस में नहीं मिलते फिर भी कुछ नाम ऐसे हैं जिनका बार-बार वर्णन आता है; जैसे–अवन्ति, गांधार, कौशल, मगध, कुरु, वत्स, वज्जि तथा पांचाल) ऐसा प्रतीत होता है कि ये महाजनपद अन्य जनपदों से अधिक शक्तिशाली थे। ये सभी राज्य गंगा-यमुना की घाटियों में स्थित थे।
क्र० स० | महाजनपद | राजधानी |
1 | अंग | चंपा |
2 | मगध | राजगृह |
3 | वज्जी | वैशाली |
4 | मल्ल | कुशीनगर |
5 | काशी | वाराणसी |
6 | कोशल | स्रवस्ती |
7 | वत्स | कौशांबी |
8 | चेदी | सुक्तिमति |
9 | कुरू | इंद्रप्रस्थ |
10 | पांचाल | अहिच्छत्र, कांपिल्य |
11 | शूरसेन | मथुरा |
12 | मात्श्य | विराट नगर |
13 | अवंति | उज्जैनी |
14 | अश्मक | प्रतिष्ठान |
15 | गांधार | तक्षशिला |
16 | कंबोज | द्वारका अथवा राजौरी |
बहुत-से जनपदों के मुखिया को राजा कहा गया है। इन जनपदों में से कई जनपदों को ‘गण’ तथा कई को ‘संघ’ कहा जाता था। परन्तु वास्तव में उन राज्यों में सत्ता थोड़े से प्रभावशाली तथा शक्तिशाली लोगों के हाथों में केन्द्रित थी जिन्हें सामूहिक रूप से राजा कहा जाता था। महावीर तथा बुद्ध दोनों का ही सम्बन्ध ऐसे गणराज्यो से था। वज्जी संघ जैसे कुछ राज्यों में राजा ही संयुक्त रूप में भूमि आदि संसाधनों पर नियन्त्रण रखते थे। ऐसा प्रतीत होता है कि इन राज्यों में से कुछ लगभग एक हजार वर्ष तक अस्तित्व में रहे।
हमें राज्यों के इतिहास के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त नहीं है परन्तु फिर भी हम छठी शताब्दी ई०पू० में भारत की राजनीतिक स्थिति के बारे में कुछ अनुमान लगा सकते हैं। देश में उस समय राजनीतिक एकता का अभाव था। इन सोलह राज्यों के शासक आपस में लड़ते-झगड़ते रहते थे। इन महाजनपदों की राजनीतिक उपलब्धियों के बारे में बहुत कम जानकारी मिलती है परन्तु उनके शासन प्रबन्ध के बारे में अवश्य ही कुछ पता चलता है।
कासिम 16 महाजनपदों में से एक है यह वैदिक काल से ही स्थापित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, काशी नगर की स्थापना हिन्दू भगवान शिव ने लगभग ५००० वर्ष पूर्व की थी, जिस कारण ये आज एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। ये हिन्दुओं की पवित्र सप्तपुरियों में से एक है। स्कन्द पुराण, रामायण एवं महाभारत सहित प्राचीनतम ऋग्वेद में नगर का उल्लेख आता है। पौराणिक कथा के अनुसार काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी हुई है जिसके बारे में कहा जाता है कि जब भी कोई संकट आता है तो शिवजी काशी को अपने त्रिशूल से उठा देते हैं तथा संकट टल जाने के बाद उसे पुनः स्थापित कर देते हैं।
काशी का नाम काशी इसलिए है क्योंकि इसे शिवजी ने स्वयं अपने त्रिशूल पर धारण किया है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भी विश्व में कोई भी संकट आता है तो शिवजी काशी को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं तथा आपदा टल जाने के बाद इसे पुनः अपने स्थान पर स्थापित कर देते हैं। गंगा तट पर बसी काशी बड़ी पुरानी नगरी है। इस वाराणसी तथा बनारस के नाम से भी जाना जाता है। यह विश्व का सबसे प्राचीन नगर है। वाराणसी का मूल नगर काशी था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, काशी नगर की स्थापना हिन्दू भगवान शिव ने लगभग 5000 वर्ष पूर्व की थी, जिस कारण ये आज एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल है तथा पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा कहा जाता की काशी को शिव जी ने अपने त्रिशूल पर धारण किए हैं। ये हिन्दुओं की पवित्र सप्तपुरियों में से एक है। स्कन्द पुराण, रामायण एवं महाभारत सहित प्राचीनतम ऋग्वेद में नगर का उल्लेख आता है।
सामान्यतः वाराणसी शहर (History of Kashi) को कम से कम 3000 वर्ष प्राचीन तो माना ही जाता है। नगर मलमल और रेशमी कपड़ों, इत्रों, हाथी दाँत और शिल्प कला के लिये व्यापारिक एवं औद्योगिक केन्द्र रहा है। गौतम बुद्ध जन्म के काल में, वाराणसी काशी राज्य की राजधानी हुआ करता था । प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने नगर को धार्मिक, शैक्षणिक एवं कलात्मक गतिविधियों का केन्द्र बताया है और इसका विस्तार गंगा नदी के किनारे 5 कि०मी० तक लिखा है।
काशी (History of Kashi) का वर्णन वैदिक काल से ही चला आ रहा है। काशीनगर वैदिक काल में 16 महाजनपदों में से एक था। महाभारत में इसका उल्लेख है। काशी से ही भीष्म पितामह अंबा, अंबिका तथा अंबालिका को हर कर ले गए थे। काशी के राजा उस काशी नरेश थे। रामायण में प्रभु श्री राम की माता कौशल्या देवी काशी की राजकुमारी थी। तथा अनेक प्रमाणों से यह ज्ञात होता है कि काशी बहुत ही पुरानी नगर है। बनारस अपने घाटों के लिए बहुत ही अधिक प्रसिद्ध है तथा यहां पर कुल 84 घाट हैं। प्रथम घाट मणिकर्णिका से लेकर इसका दायरा वरना घाट तक फैला हुआ है। काशी में बाबा विश्वनाथ का दरबार है। काशी में ही विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय स्थापित है जिसे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University) के नाम से जाना जाता है। जितनी बार भी बनारस के रहस्य को समझाने की कोशिश की गई है उतना ही और रहस्य सामने उभर कर आता है। बनारस के घाटों में सबसे प्रसिद्ध घाट मणिकर्णिका घाट, दशाश्वमेध घाट, ललिता घाट, अस्सी घाट, तुलसी घाट, हरिश्चंद्र घाट, तथा इत्यादि हैं। फिलहाल में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने एक नए घाट का निर्माण किया जिसका नाम नमो घाट है। दरअसल इस घाट का नाम नरेंद्र मोदी जी के नाम पर है इसलिए इसे नमो घाट से जाना जाता है।
यदि आप बनारस घूमने आए और काशी मंदिर ना घूमे तो आपका बनारस घूमने आना बेकार हो जाएगा। बनारस आ वाले सभी लोग सबसे पहले बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन करने के लिए जाते हैं। काशी हिंदू मंदिर हिंदुओं का प्रसिद्ध मंदिर है। मंदिर के अंदर भगवान शिव की बड़ी प्रतिमा स्थापित है। यह मंदिर शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है।
भक्त पवित्र गंगा में स्नान करने के बाद काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन करने के लिए जाते हैं। भक्तों का मानना है कि गंगा में स्नान करने के बाद शिव के दर्शन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। मंदिर में यदि आप दर्शन करना चाहते हैं तो आपको सुबह ही लाइन लगानी होगी। तभी आपको काशी बाबा के दर्शन प्राप्त हो पाएंगे काशी विश्वनाथ मंदिर सुबह 4:00 बजे खुलता है। वर्तमान समय में जो काशी विश्वनाथ मंदिर आपको दिख रहा है या अहिल्याबाई होलकर द्वारा बनवाया गया है। काशी विश्वनाथ मंदिर को कुल 4 बार ध्वस्त किया गया था और महान शासकों द्वारा इसका पुनः निर्माण कराया गया।
बनारस के हर घाट अपनी
धार्मिक सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से यह काशी के सर्वाधिक प्रसिद्ध घाटों में अग्रणी है पुराणों में इस घाट का नाम रूद्रसर मिलता है। भ्रम्हा द्वारा दशाश्वमेध यज्ञ करने के बाद से इसका नाम दशाश्वमेध हुआ ।प्रतिदिन और विशेष अवसरों पर गंगा स्नान करने वालों की संख्या सबसे अधिक इसी घाट पर होती है। भक्तों की श्रद्धा है कि हम इसी घाट पर स्नान करके ही बाबा विश्वनाथ का दर्शन करने जाए। इस घाट पर भव्य गंगा आरती प्रतिदिन शाम 6:00 बजे से 7:00 बजे तक की जाती है जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बिंदु है।
बनारस में कुल 84 घाट बने हुए हैं इन 84 घाटों में सबसे प्रमुख अस्सी घाट है। अस्सी घाट की उत्पत्ति गंगा और अस्सी घाट के संगम से हुई है। अस्सी घाट के किनारे कई सारे मंदिर बने हुए हैं। यहीं पर बाबा जगन्नाथ का भी मंदिर है। प्रत्येक वर्ष इस जगह पर मेले का आयोजन किया जाता है। बनारस घूमने आने पर आप अस्सी घाट जरूर जाएं। यहां पर शाम के समय गंगा आरती की जाती है। इस आरती में शामिल होने के लिए भक्तों की काफी भीड़ लगी रहती है।
बनारस की घाट सबसे पवित्र घाट में से एक है। इस घाट की सबसे खास बात यह है कि इसके चारों तरफ मंदिर ही मंदिर बने हुए हैं। इस घाट के चारों तरफ चिताय जलती रहती हैं। मणिकर्णिका घाट पर कभी भी अग्नि शांत नहीं होती है। जो भी भक्त मणिकर्णिका घाट पर जाते हैं उनको एक अलग सा ही सुकून मिलता है।काशी आने वाले बहुत से लोग ऐसा सोचते हैं कि उनका चिंतामणि का घाट पर जले। ऐसा इसलिए क्योंकि बहुत से लोगों का मानना है कि इस घाट में अंतिम संस्कार होने से व्यक्ति को सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इस घाट का नाम माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम से पड़ा है क्योंकि इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने बनवाया है। पहला प्रोजेक्ट काशी विश्वनाथ धाम का निर्माण और दूसरा ऐसे घाट का निर्माण करना, जिससे देश व विदेश से आए पर्यटक शहर के जाम में फंसे बिना काशी विश्वनाथ मंदिर तक जा सके। इस प्रोजेक्ट को साकार करने के लिए सभी घाटों में से खिड़किया घाट को चुना गया। यह घाट गंगा और वरुणा नदी के संगम पर स्थित है।
इस घाट पर राजा हरिश्चंद्र माता तारामती एवं रोहताश्व का बहुत पुरातन मंदिर है साथ में एक शिव मंदिर भी है। आधुनिकता के युग में यहाँ एक विद्युत शवदाह भी है,परन्तु इसका प्रयोग कम ही लोग करते हैं। बाबा कालू राम ऐवं बाबा किनाराम जी ने अघोर सिद्धी प्राप्ति के लिऐ यहीं शिव मंदिर पर निशा आराधना की थी।
तुलसीदास का पहला बार हनुमान जी का स्वप्न यहा पर आया था। इसके बाद उन्होंने इस जगह पर हनुमान जी की मूर्ति को स्थापित किया।इसके बाद मंदिर संकट मचन मंदिर के नाम से मशहूर हो गया। जो भी भक्त इस मंदिर के दर्शन कर लेता है उसके सारे दुख दर्द दूर हो जाते हैं। आप इस मंदिर में दर्शन करने के लिए जरूर जाए। मंदिर के बाहर के जूते चप्पल जमा होते हैं तथा अगल-बगल प्रसाद तथा फूल का दुकान है यदि आप अंदर से भी प्रसाद या फूल लेना चाहे तो अंदर भी प्रसाद की दुकान लगी रहती हैं आप वहां पर घंटों बैठकर भजन कीर्तन कर सकते हैं। मंदिर के अंदर आने को पुस्तक रामचरितमानस कथा हनुमान चालीसा भागवत गीता का रखा हुआ होता है जिससे भक्त अपनी इच्छा अनुसार पुस्तक को लेकर वहां पर पढ़ते हैं।
।। कर्पूर गौरम करुणावतारं संसारसारं भुजगेंद्रहारम् सदा वसंतम हृदयार रविंदे भवन भवानी सहितम नमामि ।।
हर हर महादेव।।
दशाश्वमेध घाट पर मां गंगा की भव्य आरती होती है। गर्मी में इसका समय 6:45 का है और शीतकाल में यह 7:00 बजे होता है। मां गंगा की आरती 45 मिनट तक होती है। चाहे गर्मी में हो, बरसात हो या फिर ठंड मां गंगा की आरती हमेशा होते आ रही है और होते ही रहेगी। अगर आप बनारस आए हो तो दशाश्वमेध घाट की आरती देखना ना भूलें ।
बनारस के मंदिर जितने प्रसिद्ध है उससे कहीं अधिक यहां के भोजन हैं। यहां के भोजन बहुत ही स्वादिष्ट और मजेदार हैं। बनारस के लोग सुबह की शुरुआत पूरी सब्जी के द्वारा करते हैं। पूरी सब्जी के अलावा आप यहां की गरम जलेबी लोंग लता आदि प्रकार के भोजन खा सकते हैं। लॉन्ग लता को बहुत ही यूनिक तरीके से बनाया जाता है। जो एक बार लॉन्ग लता को खा लेता है वह इसको दोबारा खाने के लिए जरूर आता है।
बनारस की बनारसी साड़ियां विश्व भर में प्रसिद्ध है। बनारसी साड़ियों को पहनने के बाद औरतों में एक अलग ही सुंदरता दिखाई देती है। इसमें औरतों का लुक लॉयल तथा एक प्रतिष्ठित परिवार के रूप में झलकता है। बनारसी साड़ियों को तो बड़े-बड़े लोग भी पहनते हैं जैसे कि बॉलीवुड की एक्ट्रेस बड़े-बड़े कंपनियों के मालिक की पत्नियां तथा और अन्य रईस लोगों के घर में भी है साड़ियां पहनी जाती है।
बनारसी साड़ी को आप बनारस में गोदौलिया मार्केट से खरीद सकते हैं यदि आप बनारस घूमने आए हो तो वह दरिया मार्केट से ही आप बाबा विश्वनाथ के दर्शन प्राप्त करोगे। इसी को तो लिया मार्केट में बनारसी साड़ियों की अनेकों दुकान है जहां से आप अच्छे रेट में तथा बहुत ही सुंदर बनारसी साड़ी को खरीद सकते हो।
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