10 Amazing Games:- बचपन एक ऐसा समय होता है जब हमारे जीवन में खिलौने और खेल का बहुत अधिक महत्व होता है। स्कूल के पाठ्यक्रम और परीक्षाओं के बीच, हमारे जीवन के खुशी भरे पलों में हमारी यादों में बचपन के खेल(Bachpan ke Khel) और खिलौनों का खजाना समाहित होता है। वे दिन जब हम अपने दोस्तों के साथ फुटबॉल, क्रिकेट, खो खो, बास्केटबॉल, हॉकी, आदि खेल खेलते थे या खिलौनों की दुकानों में जाकर खिलौने खरीदते थे।
बचपन के कुछ ऐसे गेम जो कल घटनाओं से जुड़ी हुई है जिसको हम बिना जाने अनजाने में खेलने आ रहे हैं परंतु अगर आप इस गेम के असली सच के बारे में जान जाएंगे तो फिर दोबारा इसे कभी नहीं खेलेंगे। सुबह से शाम तक खेले जाने वाले ऐसे ही कुछ गेम्स के काला सच। तो लिए ऐसे ही कुछ गेम्स के बारे में आपको बताते हैं।
Ring o ring o roses, A pocketful of posies, A-tishoo! A-tishoo! We all fall down.
जहां रोगी किसी महिला का नाम नहीं बल्कि जो 1965 में लंदन ग्रेट प्लेग हुआ था। उसमें रेड कलर के जो सिम्टम्स नजर आ रहे थे उसका सिंबल है और रही बात पॉकेट की तो उसे ब्लैक में जो जो मर रहे थे उनको एक-एक करके गड्डे में फेंका जा रहा था उसके बाद उसे जला देते थे। इसीलिए तीसरी लाइन है A-Tishoo! A-Tishoo! हा हा। बाकी रही बात वी ऑल फॉल डाउन की तो इसका मतलब है मौत जो लंदन के 50% पापुलेशन को प्राप्त हुई थी। और यह सारी बातें जानने के बाद आप फिर से यह गेम नहीं खेलेंगे।
इस गेम को कब क्यों और किसने बनाया किसी को नहीं पता है। इस गेम के बारे में पता है तो बस इतना की 200 से 400 साल पहले जब साइंस ने तरक्की नहीं की थी तब साइंटिस्ट को आज के रिंग में जला दिया जाता था। वह इसलिए क्योंकि तब साइंस लोगों के लिए नया था। जब भी कोई साइंटिस्ट फिजिक्स या केमिस्ट्री का एक्सपेरिमेंट करता तो लोग उसे शैतान या फिर काले जादू का पुजारी कहते थे और उसे आग के रिंग में डाल देते थे। परंतु शुक्र है कि आज स्थिति बदल चुकी है और विज्ञान बहुत ही आगे बढ़ चुका है वरना जो बच्चे यह गेम खेलते हैं वह इसे खेलने में भी डरते।
जब हम छोटे बच्चे थे तो बहुत ही सताने किया करते थे बहुत ही नादान थे इसके उसके ना जाने कौन-कौन सी प्रॉमिस किया करते थे। और अपनी बात को सच साबित करने के लिए हम लिटिल फिंगर को दूसरे के लिटिल फिंगर से जोड़कर पिंकी प्रॉमिस किया करते थे। यह सिलसिला सन 1600 से पहले से ही चलता आ रहा है। तब के लोग इसका मतलब यह था कि अगर वादा टूटा तो अपनी लिटिल फिंगर तोड़कर तेरे हाथ में रख दूंगा इस गेम का यही मतलब था। और आज के बच्चे तो बस इसे एक खेल समझ लेते हैं बिना इसके पीछे की सच्चाई जाने।
शाम का समय और गुलाबी धूप हम सभी अपने चार दोस्तों के साथ हाथ में डंडा लिए उन टायर्स के पीछे भाग रहे हैं। याद आ गई ना बचपन की। हालांकि इस गेम का कोई अशेच नाम तो नही था परंतु बिन जाने इस गेम को बच्चो ने इसे इतना खेला है की आधे गांव का रास्ता तो उन्होंने नाप दिया हुआ है। इस बेहतरीन खेल को खेलने के लिए क्या ही चाहिए बस एक टायर हाथ में डंडा और फिर उसके पीछे भागते रहो जिसका टायर सबसे आगे रहेगा वही रहेगा विजेता परंतु एक जमाने में यह सजा हुआ करता था और साइकिल के टायर की जगह मेटल का हुआ करता था। और उसे घूमने के लिए लकड़ी की जगह मेटल का रोड हुआ करता था और हकीकत में दोनों ही भारी थे। तो किसी ने इस खेल में अपने हाथों की उंगलियां गवाई है तो किसी ने अपने पैरों की।
इस गेम को बचपन मैं किसने नहीं खेला होगा ऐसा कोई नहीं होगा जो भी इस गेम को ना खेल हो हमारे आमचाल के भाषा में हम लोग इसे आईस पाईस कहते थे। परंतु इसी गेम के चलते 2018 में दो बच्चों ने अपनी जान गवा दी थी बच्चों की उनके बाल चार वर्ष और 6 वर्ष था। परंतु उन्होंने छुपाने के लिए एक आईरन बॉक्स का चुनाव किया जिसमें वह दोनों छुप गए परंतु वह बॉक्स बाद में खुला ही नहीं जिसकी वजह से उनकी मौत हो गई। ऐसा ही घटना एक मॉल में होते-होते बचा।
के का नाम तो आपने सुना भी होगा और इसे खेल भी होगा कितना मजेदार गेम है ना परंतु जब गोटे की जगह इंसान को ही मार दिया जाए तो कैसा लगेगा सुनने में थोड़ा अजीब लग रहा है ना परंतु आज हम आपको इसी वूमेन चेस के बारे में बताएंगे। इस गेम में दो राज्य के राजा रहते थे और उनके सैनिक खड़े रहते थे या गेम दोनों राजा आपस में इसलिए मिला करते थे कि या फिर उन्हें रानी मिल जाए या फिर सामने वाले राजा का राज्य। इस गेम में खड़े हुए सैनिक को गेम से नहीं बल्कि दुनिया से ही हटा दिया जाता था।
जब किसी के आंख पर पट्टी बांध के उसको पीछे से मारना कितना अच्छा लगता था है ना याद है ना यह गेम जिसे हमें खेलने में बहुत ही मजा आता था। किसी को प्रपोज करना हो तो आंखों पर पट्टी किसी को सरप्राइज देना हो तो आंखों पर पट्टी बर्थडे पार्टी का सरप्राइज देना हो तो आंखों पर पट्टी और किसी को फांसी की सजा देना हो तो आंखों पर पट्टी। यह हमारा बचपन का खेल कहां से कहां तक पहुंच गया है।
यह तो मैंने आपको इस गेम का पहला पहलू बताया है अब दूसरे पहलू की बात करते हैं बात है सन 2016 की जब कुछ लोगों ने 11 साल की बच्चियों की आंखों पर पट्टी बांधकर उन्हें एक तरफ चीनी और एक तरफ नमक रख दिया था और उसे पहचान के लिए कहा था जब उन लड़कियों ने आगे बढ़ा तो उन आदमियों ने अपना प्राइवेट पार्ट खोलकर उनके हाथ में दे दिया और उसे पहचान के लिए कहा परंतु जब बच्चियों ने उसे पहचानने से मना कर दिया तब उन्होंने जबरदस्ती उनके हाथ में देखकर उनसे लिख करवाया सुनकर ही रूप कांप जाती है। ब्लाइंडफोल्ड के जरिए ही ना जाने कितने रेप होते आ रहे हैं। इसका मतलब तो यही है किसी पर आज बनाकर भरोसा करने से पहले हजार बार सोच लेना।
कितना मजेदार था यह गेम ना जब दो लोग हाथ पकड़ कर कुछ बच्चे ट्रेन जैसे लाइन बनाकर उन हाथों के बीच में से निकलते थे और गाना गुनगुनाते थे जहां पर एक बच्चे को बीच में पकड़ लिया जाता था। जब बच्चे इसे खेलते थे तो बहुत ही खिलखिला कर हंसते थे परंतु इस लंदन ब्रिज का सच यह है कि जब लंदन का ब्रिज बना था तो वहां पर लोग रोते थे क्योंकि उसे ब्रिज पर बच्चों की बालियां दी गई थी।
तब की लीडर का ऑर्डर आया था कि वहां पर बलिया चढ़ाई जाए। उनके आर्डर का पालन करते हुए वहां के सैनिक बच्चों को वह ब्रिज दिखाने के लिए लेकर आते और इस ब्रिज पर उनको दफना देते। वह बच्चे इस प्रकार ब्रिज में ट्रैप होते थे जिस प्रकार हम इस खेल में दो हाथों के बीच में किसी बच्चे को ट्रैक कर लेते हैं। फर्क बस इतना है कि वह बच्चे रोते-रोते अपनी जान गवा देते थे और हम इस खेल को खेलते हुए खूब बजे से और हंसते हैं। जो अब हसेंगे कि नहीं यह सच जानने के बाद।
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